(First) Poetry author: Prithvi
(Second) Painting author: Hitaishi
विषयसूची
1. मेरे गाँव की शामें
2. धरती माँ
3. मोहब्बत के बादल
4. दिल का समन्दर
5. मेरी पाठशाला
6. मेरे दोस्त
7. जो यूँ ही भूल जाओ तुम
8. जय भारत
9. जब वक्त बदलेगा
10. मन चंचल है
धरती माँ
जो हरी थी तो गोद सबकी भरी थी
पालती थी जो सबको और सबको पोषती थी
जिसके आचँल मे थी छाँव, क्या शहऱ क्या गाँव्व्
उसकी मिटी के ढेले, जिनमे बचपन थे खेले
मनाई होली और दिवाली
जिसके रंग देखे कई, कहीं लाल तो कहीं काली
हम उसके बेटे उससे लेते ही गये
उसे संजोया जरा भी नहीं, बस लालची होते ही गये
कहीं काट दिए जंगल तो कहीं बाँध दिए बाँध
इमारतों पे इमारतें ढोते ही गए
पर अब, वो माँ थकने लगी थी
अंदर ही अंदर सिसकने लगी थी
भूज्ञानियों ने कहा, धरती खिसकने लगी थी
फिर एक दिन मची खलबली और जैसे काल आ गया
दुनिया मस्त थी और अचानक भूचाल आ गया
विनाश लीला हो रही थी, बेबस माँ भी रो रही थी
पर आओ अब सब्र करें, रोकें अपनी मनमानी
उगने दें जंगल और बहने दें पानी
गर पृथ्वी के हितैषी रहोगे तो हरा रहेगा बाग और सुखी रहेगा माली
धरती जो माँ थी !
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मेरे गाँव की शामें
याद आएं मुझे मेरे गाँव की शामें
लोगों से भरे बाजार, वो चाय के ठेले, और राशन की दुकानें
याद आएं मुझे मेरे गाँव की शामें
वो ढलता लाल सूरज, वो घटता सा प्रकाश
वो गाँव का बूढ़ा पीपल, पंछियों से भरा आकाश
सब लौट कर काम से जैसे, लगे हों घोंसलों मे जाने
याद आएं मुझे मेरे गाँव की शामें
वो गॉव की पुरानी आटा चक्की और जमी पर बिखरे हुए दाने
वो सदियों पुराना कुआं और वो लोग जाने पहचाने
वो रसोई से उठता धुआँ, वो रेडियो पे बजते गाने
वो सरसों की ताजा खुशबू, वो मिटटी के बरतन पुराने
याद आएं मुझे मेरे गाँव की शामें
वो घरों की जलती बत्तियाँ, वो दीये और मोमबत्तियाँ
वो खुले हुए दरवाजे, वो झिंगुरों की आवाजें
वो गली में बच्चों का शोर, उड़ती हुई कोयलें और नाचते हुए मोर
वो छत्त पे सुखते लाल दुप्पटे और सफ़ेद पजामे
याद आएं मुझे मेरे गाँव की शामें
वो चवारे का कबूतर, वो गुरद्वारे का स्पीकर
वो मंदिर की घंटियाँ, वो मस्जिद की अजानें
याद आएं मुझे मेरे गाँव की शामें
याद आएं मुझे मेरे गाँव की शामें
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दिल का समन्दर
दिल का समन्दर शांत रहता है आजकल
कोई आकर अब लहरें उठाता भी तो नहीं है
मौज़ का सफ़र भी अब सूना सूना सा है
कोई माँझी अब गीत गाता भी तो नहीं है
परेशान हूं की क्योँ उदास चेहरों की गिनती बढ़ रही है दिन ब दिन
खैर बेवजह आजकल कोई मुस्कुराता भी तो नहीं है
दिल का समन्दर शांत रहता है आजकल
बड़ा मतलबी सा शहर होगया है मेरा अब,
नफरत के अंधेरो में लोग डरते हैं दिन ढलने के बाद
कहीं से रौशनी की उम्मीद करे भी तो कैसे
मुंडेर पर अब कोई दीया जलाता भी तो नहीं है
कहीं कोई पुकार न दे सहारे के लिए बीच राह में
कई बार आदमी देख कर भी बुलाता नहीं है
दिल का समन्दर शांत रहता है आजकल
दो दिलों के बीच की तकरार जायज है कभी कभी
कुछ पल की नाराज़गी भी प्यार की ही निशानी है
छोटे छोटे गिले शिक़वे जाने क्यों रंजिश हो जाते हैं अक्सर
खैर, रूठ जाने पर अब कोई मनाता भी तो नहीं है
दिल का समन्दर शांत रहता है आजकल
कोई आकर अब लहरें उठाता भी तो नहीं है
गांव से शहर का सफ़र भी पृथ्वी जरूरी था
कुछ तेरे शौक थे और कुछ मजबूरी था
गावों के खेत भी अब बंज़र है खेतीबाड़ी के जतन कम हो रहे है
खेतों की जाती हरयाली को देख अब किसान भी खत्म हो रहे हैं
इस मजबूरी के कारण यूं तो कई हैं
ऊपर से कोई बादल वक़्त पर पानी बरसाता भी तो नहीं है
दिल का समन्दर शांत रहता है आजकल
कोई आकर अब लहरें उठाता भी तो नहीं है
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मेरे दोस्त
आओ मेरे दोस्त तुम्हे कविता में बुलाऊ
मैं याद करूँ तुमको और तुमको याद आऊं
जो हमने साथ में था कभी गुनगुनाया, वो पुराना गीत फिर से गाऊँ
आओ मेरे दोस्त तुम्हे कविता में बुलाऊ
दुनिया के मेले में जब खुद को पाऊँ अकेले में
मैं याद करूँ तुमको और यादों में खो जाऊं
जब साथ पाऊं तुम्हारा तो गम भूल जाऊं सारा
वो सुनहरी पल सारे जो साथ में थे गुजारे
आओ आज तुमको मैं फिर से याद दिलाऊँ
आओ मेरे दोस्त तुम्हे कविता में बुलाऊ
यूँ तो नाते रिश्ते सारे मैने जन्म से थे पाये
पर इक नया रिस्ता जाना जब तुम जीवन में आये
मैं जब जब उदास बैठा तुम तब तब मुझे हँसाये
जब सब उठकर चलदिये तो तुम गले से लगाये
मैंने कई सुर बिगाडे पर तुम हमेशा सुर में गाये
वो बेसुरे गाने सारे आओ फिर से तुम्हे सुनाओ
आओ मेरे दोस्त तुम्हे कविता में बुलाऊ
तुम इंद्रधनुषी के रंगो जैसे
बसंत में उड़ती पतंगों जैसे
मेरे चंचल मन के हाल हो तुम
मेरे होली के लाल गुलाल हो तुम
काली रात को रोशनाते तारे हो तुम
बहती नदी के किनारे हो तुम
कस्तूरी मृग के इत्र हो तुम
पृथ्वी के परम मित्र हो तुम
और किस किस से तुम्हारी उपमा कराऊँ
आओ मेरे दोस्त तुम्हे कविता में बुलाऊँ
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मोहब्बत के बादल
बन के मोहब्बत के बादल आईये मेरे शहर
और प्यार की रिमझिम बरसात कीजिये
प्यार के आभाव में मुरझा रही है डालियाँ -2
उनको नवजीवन की सौगात दीजिये
बन के मोहब्बत के बादल आईये मेरे शहर
प्रेमरस पीकर उपवन पुनः खिल जाएगा
खुशी होगी चमन में भंवरा कली से जब मिल जायेगा
मोहब्बत के जुगनू सूरज कर देंगे फासलों की काली रात को
बस आप इन दीयों को थोड़ी आग दीजिये
बन के मोहब्बत के बादल आईये मेरे शहर
जिंदगी की जुस्तजू जरूरी है जीते रहने के लिए
फिरकी का घूमना भी जरूरी है सीते रहने के लिए
गर अकेले बैठोगे तो तन्हाई में डूब जाओगे
साथ साकी का भी जरूरी है पीते रहने के लिए
इससे पहले की जिंदगी का नशा उतरने लगे -2
पैमाना प्यार से मेरा फिर से भर दीजिये
बन के मोहब्बत के बादल आईये मेरे शहर
चाह सिर्फ इतनी सी कि हर तरफ प्यार ही प्यार हो
हर फूल हो खिला हुआ पूरे बाग़ में बहार हो
कोई जब बोले तो मधुर कोयल सी बोली हो
नफरत के निशां ही मिट जाएँ मोहब्बत की ऐसी होली हो
आपसी प्रेम का लाल गुलाल पोतकर -2
फीके रंग जात धर्म के सारे धो दीजिये
बन के मोहब्बत के बादल आईये मेरे शहर
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मेरी पाठशाला
इक दिन जब याद आई मुझे मेरी पाठशाला
वो खाकी सी वर्दी, वो छोटे छोटे वस्ते
और वो स्याही का रंग काला
इक दिन जब याद आई मुझे मेरी पाठशाला
उस दिन जब बज गयी थी प्रार्थना की घंटी
भागे मैं, सोनू और बंटी
देखा जब मास्टर हिसाब वाला
इक दिन जब याद आई मुझे मेरी पाठशाला
वो अ आ इ ई याद आई जो मैडम ने बोर्ड पर थी लिखवाई
अंग्रेजी के पाठ याद आये जिन के लिए डंडे थे खाए
वो लाल इमली याद आई जो आधी छुटी में थी चटकाई
और याद आया मुझे वो चाचा क़ुल्फ़ीवाला
इक दिन जब याद आई मुझे मेरी पाठशाला
हिंदी की कहानियाँ और हिसाब के सवाल याद आये
लाल पीले रेश्मी रुमाल, तेल में डूबे बाल याद आये
वो आलु गोभी के परांठे और गोल टिफ़िन के डब्बे
वो सफ़ेद सफ़ेद कमीजें और नीले नीले धब्बे
संस्कृत के श्लोक और कबीर जी के दोहे याद आये
मूंगदाल के हलवे, जलेबी और पोहे याद आये
और याद आया मुझे वो पानी टैंकीवाला
इक दिन जब याद आई मुझे मेरी पाठशाला
इक इक करके सारे साथी सारे मित्र याद आये
इतिहास की कहानिया भूगोल के चित्र याद आये
यही नहीं सहमे सहमे से वो परीक्षा के दिन भी याद आये
इतिहास की तारीखे और ट्रिग्नोमेट्री के चिन्ह भी याद आये
और फिर याद आया मुझे दिन परिणाम वाला
इक दिन जब याद आई मुझे मेरी पाठशाला
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जय भारत
प्यारे देश मेरे भारत की गाथा से चंद पंक्तिओं सुनाता हूँ
सुनना देश के प्यारो मैं इतिहास में डुबकी लगाता हूँ
भरत के नाम से जन्मी ये उस अदभुत धरा की कहानी है
जहाँ संत कबीर के दोहे हैं और गुरु नानक की वाणी है
शीश हिमालय ऊँचा जिसका चरणों में गंगा का शीतल पानी है
जहाँ अवतार लिया श्रीकृष्ण राम ने ,
ऋषि मुनियों की उस पावन धरती की कथा सुनाता हूँ
सुनना देश के प्यारो मैं इतिहास में डुबकी लगाता हूँ
सोने की वो चिड़िया बहुत समृद्ध सम्पन और बलवान हुई
विस्व ने उसकी महिमा गाई इतनी वो महान हुई
पर फिर जब समय ने करवट ली तो ऐसी भी इक काली शाम हुई
सोने की वो चिड़िया अपने ही घर में गुलाम हुई
फिर ज्यों ज्यों समय बढ़ने लगा
गुलामी की ज़ंज़ीरो को आजादी का रंग चढ़ने लगा
फिर जन्म लिया टैगोर, भगत, सुभाष , आज़ाद जैसे वीरों ने
स्वतंत्रता की खातिर जान न्योछावर कर दी अनेक शूरवीरो ने
आज़ादी की लड़ाई लड़ी बापू ने बिन तलवारों बिन तीरों के
जलियाँ वाले बाग़ का वो हृदय विदारक दृश्य याद दिलाता हूँ
सुनना देश के प्यारो मैं इतिहास में डुबकी लगाता हूँ
आखिर देश आज़ाद हुआ नवभारत का अवतार हुआ
उस देश प्यारे की आज़ादी की शुभकामनायें आप तक पहुंचाता हूँ
सुनना देश के प्यारो मैं जय हिन्द बुलाता हूँ
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जब वक्त बदलेगा
जब वक्त बदलेगा तो, हर चीज़ बदल जाएगी
जब हालात बदलेंगे तो, खयालात भी बदलेंगे-2
खयालात बदलें तो फिर, तहजीब बदल जाएगी
जब वक्त बदलेगा तो, हर चीज़ बदल जाएगी
जी थोड़ा तुम भी बदलना, उस नए ज़माने में
पर जड़े मत छोड़ देना, नयी उँच्चाईयां कमाने में
क्योंकि जड़े गर सूख गयी तो, डालियाँ भी सूख जाएगी
जब वक्त बदलेगा तो, हर चीज़ बदल जाएगी
नए वक्त मे पुरानी चीजों की गर कदर होगी
पीछे और भी चलेंगे मजबूत गर डगर होगी
कुछ ऐसा भी बीजना पृथ्वी की संस्कारो की कमी न हो
क्योंकि बीज गर सड़ गए तो, सारी फसल बिगड़ जाएगी
जब वक्त बदलेगा तो, हर चीज़ बदल जाएँगी
नए घर बनाना और नए सपने भी सजाना
नए आयनों को लेकिन पुरानी तस्वीरें भी दिखाना
शहर में बेशक आलिशान आशियाने करना
पर कभी गॉव की तंग गलियों में भी आना जाना
मिलते रहोगे गर खुद के अतीत से, तो मंजिल याद रहेगी
वरना बेबजह चलने से सिर्फ सफर लम्बा होगा, मंजिल फिर भी दूर रह जाएगी
जब वक्त बदलेगा तो हर चीज बदल जाएगी
मन चंचल है मन चंचल है
इस चंचल नू समझा के देखो जी
थोड़ा बहला के देखो जी
कोई जंतर पा के देखो जी !
मन चंचल है
जद चलन हवावां दुखां दियां
अखां विच रुतां हाडां दी
जद लग्गे न किसे कम विच जी
यादां आवण बेलियां यारां दी
करो याद ते इस्नू रुला के देखो जी
थोड़ा समझा के देखो जी
कोई जंतर पा के देखो जी !
मन चंचल है
जद मुड़ आवे रुत मस्तानी जी
थम जाये अखां दा पानी जी
मन मन में ही मुस्काये
देख देख दिलबर जानी जी
करो हासे ते इस्नू हसां के देखो जी
थोड़ा समझा के देखो जी
कोई जंतर पा के देखो जी !
मन चंचल है
जद चारो पासे ही शोर होवे
काली रात डरावे, न भोर होवे
ये मरजाना भाले एकांत कोई
जिमे समाधि ते बैठा संत कोई
करो अरदास ते निमियां पाके देखो जी
थोड़ा समझा के देखो जी
कोई जंतर पा के देखो जी !
मन चंचल है